चैत्र नवरात्रि का आध्यात्मिक एव वैज्ञानिक महत्व – राजकुमार अश्क़ Purvanchal 24×7 News

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चैत्र नवरात्रि का आध्यात्मिक एव वैज्ञानिक महत्व
राजकुमार अश्क़


हमारा देश भारत ऋषियों, मुनियों, मनीषियों, योगियों, तपस्वियों का देश रहा है, इनके जप,तप में आध्यात्म के साथ साथ विज्ञान की भी परिपूर्णता होती थी। आज सारी दुनिया इस बात को मानने के लिए बाध्य हैं कि जिस चीज़ को वैज्ञानिक आज खोज रहे हैं उस चीज को भारतीय मनीषियों ने हजारों वर्ष पहले ही अपनी आध्यात्मिक शक्ति से खोज निकाला था।
आज हम इसी विज्ञान और आध्यात्म से सम्बंध रखने वाले नवरात्रि पर कुछ ज्ञानवर्धक जानकारी ले कर आए हैं, उम्मीद है हमारे सुधी पाठकों को यह ज्ञानवर्धक लगेगी।
कहा जाता है कि पवित्र मन में ईश्वर का वास होता है। अगर आपकी वाणी, चरित्र, कर्म सब सात्विक है तो आपको ईश्वर को ढुंढ़ने की जरूरत नहीं है वह आपके अंदर ही विराजमान है।


जब हम नवरात्र शब्द का प्रयोग करते हैं तो इसका अर्थ होता है वह विशेष रात्रि जिस रात्रि में शक्ति की उपासना की जाती है, क्योंकि रात्रि शब्द सिद्धी का प्रतीक माना जाता है। प्राचीन ऋषि मुनियों ने दिन की अपेक्षा रात्रि को बहुत अधिक महत्व दिया है, यही कारण है कि अधिकतर त्योहारों को रात्रि में मनाने की परम्परा है, जैसे दिपावली, होलिका दहन, शिवरात्रि, और नवरात्रि आदि।
अगर हमें नवरात्र के वैज्ञानिक महत्व को समझना है तो सबसे पहले हमें नवरात्र को समझना होगा।भारतीय मनीषियों ने पूरे वर्ष में चार नवरात्र का उल्लेख किया है,,जिसमें दो गुप्त नवरात्र होतें तथा दो सदृश नवरात्र।


विक्रम संवत् के पहले दिन यानि चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से नौ दिन अर्थात नवमी तक। इसी प्रकार ठीक छ: माह बाद आश्विन मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से महानवमी तक नवरात्र माना जाता है, जब कि इनके बीच दो नवरात्र होतें जिन्हें ही गुप्त नवरात्र माना जाता है जो कि तंत्र मंत्र आदि की सिद्धी के लिए विशेष उपयोगी माना जाता है।


शारदीय नवरात्र की अपेक्षा चैत्र नवरात्र का विशेष महत्व होता है, लोग अपनी आध्यात्मिक और मानसिक शक्ति संचय करने के लिए अनेकों प्रकार के व्रत, यज्ञ, संयम, नियम, हवन, पूजन, योग साधना करतें हैं। यहाँ तक कि कुछ साधक एक ही आसन में बैठ कर पुरी रात बिता देते हैं। मगर आजकल अधिकांश उपासक शक्ति पूजा रात्रि में न करके दिन में ही करना ज्यादा उचित समझते हैं जबकि ऐसा होना नहीं चाहिए।


यह बात तो रही आध्यात्मिक मगर
वैज्ञानिक दृष्टि से नवरात्रि का अपना अलग ही महत्व है, सभी नवरात्रि ऋतुओं के बदलने के समय पड़तीं है, जो क्रमशः मार्च अप्रैल और सितम्बर अक्टूबर में होती हैं। जब ऋतु बदलती है तो रोगों का संक्रमण बहुत ज्यादा होता है। इस समय अपनी आंतरिक क्षमता को बढा़ने के लिए लोग व्रत रखते हैं, व्रत रखने से आंतरिक एवं हवन पूजन करने से बाहरी वातावरण शुद्ध होता हैं, और हमारी आंतरिक शक्ति रोगों से लड़ने में सहायक होती है।


विज्ञान भी इस बात को स्वीकार करता है कि उपवास करने से हमारे शरीर की आंतरिक सफाई होती है जिससे बिमारियों का खतरा बहुत हद तक कम हो जाता है।
इस समय जो फलाहार किया जाता है उसमें प्रचुर मात्रा में विटामिन, खनिज, मीनिरल्स आदि पोषक तत्व प्राप्त होते हैं जो हमारी आंतरिक ऊर्जा को बढ़ा कर रोगों से लड़ने में हमारी मदद करते हैं।
सोर्स:- उपरोक्त दी गई जानकारी कथा, प्रवचनों, एवं विभिन्न माध्यमों से एकत्र की गई है।

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Author: Purvanchal 24x7

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