ज़कात, फितरा और सदका का महत्व- राजकुमार अश्क Purvanchal 24×7 News

👇समाचार सुनने के लिए यहां क्लिक करें

ज़कात, फितरा और सदका का महत्व
राजकुमार अश्क


माह-ए-रमजा़न का आगाज होतें ही हर मुसलमान खुदा की इबादत में अपने आपको मशगुल कर लेता है कहा जाता है इस पाक महीने में की गई इबादत खुदा जरूर कुबूल करता है. और इस मुकद्दस महीने में की गई खैरात, दान कई गुना ज्यादा हो कर दान देने वाले के पास आती हैं।


पुरी कायनात के सभी धर्म एक ही बात कहते हैं गरीबों, मजबूरों, मुफलिसी में जी रहे लोगों की मदद करने से बढ़कर कोई दूसरा धर्म नहीं है कोई दूसरी इबादत नही है. इसी दान देने की बात को इस्लाम धर्म में ज़कात के नाम से जाना जाता है।
वैसे तो ज़कात शब्द का जिक्र कुरान में 33 बार आया है, और इस शब्द का प्रयोग अधिकतर नमाज़ के बाद किया गया है. ज़कात शब्द का अर्थ होता है पवित्र करना पाक करना या शुध्द करना. इस्लाम धर्म के अनुसार 5 मूल स्तम्भ होतें है जिनमें से ज़कात भी एक है, और यह ज़कात अदा करना हर मुसलमान के लिए ज़रूरी होता है. शरीयत के अनुसार ज़कात उस माल को कहते हैं जिसे इंसान अल्लाह के दिए हुए माल मे से उसके हकदाऱो को देता है. शरीयत के अनुसार हर मुसलमान को अपनी आमदनी का ढाई(2.5%)फीसदी हिस्सा गरीबों को दान देना चाहिए।


धार्मिक ग्रन्थ के अनुसार रमज़ान के महीने में की गई ख़ुदा की इबादत तभी कबूल होती है जब ज़कात अदा की जाती है. मान्यता के अनुसार व्यक्ति रमज़ान के महीने में जितना ज्यादा जका़त निकालता है खुदा उसको उतना ही बरकत देता है. लेकिन जका़त तभी कबूल होती है जब वह मेहनत की कमाई से की जाती है. जका़त का एक नियम होता है कि परिवार के जितने भी सदस्य कमाते है उन सब का जका़त देना जरुरी होता है. जका़त पर सबसे पहला हक अपने परिवार के भाई बंधुओं का होता है जो अपना जीवन मुफ़लिसी में गुजार रहे हैं उसके बाद विधवा औरत, अनाथ बच्चों का बिमार व कमजोर आदमी का या किसी भी जरूरतमंद का जो गरीब हो लाचार हो. ज़कात को मस्जिदों में भी दिया जा सकता जहाँ दीन का इल्म दिया जाता है।


बहुत से लोगों को लगता है कि जका़त फितरा और सदका एक ही है जबकि इनमें बुनियादी तौर कुछ अंतर है. क्योंकि जका़त इस्लाम की पांच बुनियादों में से एक है जिसे हर मुसलमान को अपनी आमदनी का 2.5 फीसदी देना लाजमी होता है. वही फितरा आप अपनी हैसियत के अनुसार दे सकते हैं, इसकी कोई निश्चित सीमा नहीं होती है. मगर यदि आपके पास ज्यादा पैसा नहीं है तो आप 1 किलो 633 ग्राम गेहूं भी दे सकते हैं।


फ़ितरा– फि़तरा अपनी इच्छा अनुसार दिया जाने वाला दान होता है. जो लोग सम्पन्न हैं खुदा की राह से अच्छी कमाई करते हैं, उन्हें रमज़ान के महीने में ईद से पहले जरूरतमंदों को फितरा की रकम अदा करने की बात कही गई है.मगर जका़त की तरह इस पर किसी प्रकार का प्रतिबंध नहीं है कि कितना देना है फितरा को आदमी अपनी इच्छा के अनुसार दे सकता है।
सदका– सदका उस असबाब या उस वस्तु को कहा जाता है जो खुदा के नाम से निकाल कर किसी मजलूम गरीब को दिया जाता है. सदका टोने टोटके को उतारने के लिए व्यक्ति के सर पर से उतार कर किसी गरीब को या किसी खुली जगह पर रख दिया जाता है, या फिर किसी को दान कर दिया जाता है।
अमुमन देखा जाए तो इन तीनों का एक ही मतलब निकल कर सामने आता है वह गरीबों की मदद करना. गरीबों की मदद से बढ़कर कोई इबादत नही होती है.
उपरोक्त दी गयी जानकारी विभिन्न स्रोतों एवं बडे़ बुजुर्गों के द्वारा दी गई है

Purvanchal 24x7
Author: Purvanchal 24x7

Leave a Comment

और पढ़ें